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निकल सकती है ? कह कर पत्नी के वचनों पर ध्यान नहीं दिया ।
एक दिन समुद्र में जल कान्तिमय पर्वत आदि कौतुक दिखाने के बहाने अवसर पाकर समुद्रदत्त ने कुमार को समुद्र में गिरा दिया। उसे समुद्र में गिरते ही एक बड़े मच्छ ने निगल 'लिया और गहरे जल में चला गया। फिर समुद्र - तरंगों के साथ कुमार के पुण्य से वह मच्छ समुद्र तट जा पहुँचा जिसे धीवर ने जाल में पकड़ लिया । जब मच्छ का उदर चीरा गया तो उत्तमकुमार बिना किसी कष्ट से उसमें से निकल गया । धीवर लोगों ने कुमार को अपना स्वामी स्थापन कर दिया और वह उनकी वस्ती में फलाहार द्वारा अपना जीवन निर्वाह करने लगा |
इधर उत्तमकुमार को समुद्र में गिराकर सेठ कपट - विलाप करने लगा। जब मदालसा ने कोलाहल में कुमार के समुद्रपतन का सुना तो वह समुद्रदत्त के इस अकृत्य को ज्ञात कर नाना विलाप करते हुए अपना धैर्य खो बैठी । वृद्धा ने उसे आत्मघात महापाप बतलाते हुए हंस हंसी का दृष्टान्त देकर शान्त किया । निर्लज्ज समुद्रदत्त मदालसा को सान्त्वना देने के बहाने आया और उसकी प्रशंसा करते हुए भावी प्रबल बता कर अन्त में उसे अपनी गृहिणी बन जाने की प्रार्थना की । मदालसा ने शील रक्षा के हेतु छल का आश्रय लेकर उसे कहा कि कुछ दिन ठहरिये, मेरे पति को दस दिन हो जाने दीजिये फिर किसी नगर में जाकर राजा के समक्ष आपका कथन स्वीकार कर
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