________________
[ ३० ] : समुद्रदत्त ने उत्तमकुमार के प्रति बड़ी आत्मीयता प्रकट की और उसके साथ इतनी घनिष्ठता पैदा कर ली कि दोनों का अधिकांश समय एक साथ ही व्यतीत होता था। मदालसा ने चतावनी देते हुए कहा-प्रियतम ! यह सेठ ऊपर से मधुरभाषी पर अन्तर में बड़ा कलुषित और कपटी है। आप इसका तनिक भी विश्वास न करें, कहीं यह धोखा दे देगा। यतः
मोर मधुर स्वर करि नै बोले, रंग-सुरंगो होइ।
पूंछ सहित विषधर ने खायै, इण दृष्टान्ते जोइ । यह मुझे हरण करने के लिए तुम्हारे से प्रेम दिखाता है है क्योंकि 'दाढ गले सहुनी गुल दीठां, तेहवो नारि शरीर' अतः आप सावधान रहें। काले मस्तक का मानव बड़ा कपटी होता है कवि ने मदालसा के मुख से एक राजकुमार का दृष्टान्त कहलाया है जो अश्वारूढ होकर वन में गया। वनदेव ने बानर का रूप करके राजकुमार को वृक्ष पर आश्रय दिया और रात्रिमें सिंह के उपस्थित होने पर जब उससे राजकुमार को मांगा तो उसने नहीं दिया पर जब बानर राजकुमार के गोद में सो गया तो सिंह की मांग पर अपने अश्व की रक्षा के बदले बानर को वृक्ष से नीचे फेंक दिया। कवि ने इतनी कथा लिखकर आगे का चार श्लोकों आदि का कथा प्रसंग व्याख्याता को मौखिक विवेचन करने की सूचना दी है। मदालसा ने कहा प्रियतम ! सावधान रहें ताकि भविष्य में पश्चाताप न हो। सौजन्यमूर्ति उत्तमकुमार ने कहा-सेठ धर्मात्मा है ! चन्द्र से अग्नि कैसे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org