SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २६ ] बड़ी प्रसन्नता व्यक्त की और सब लोग प्रवहणारूढ़ होकर रवाना हो गए। ____ कुछ दिन बाद फिर जहाजों का पानी समाप्त हो गया। जल के बिना लोगों को दुखी देखकर मदालसा ने लोगों का उपकार करने के लिए पतिसे प्रार्थना की । उत्तमकुमार ने कहाजल बिना सबके ओष्ट सूख रहे हैं, क्या उपाय किया जाय ? यदि तुम कुछ कर सको तो सबका दुःख दूर हो। मदालसा ने अपने आभूषणां का करण्डिया खोलकर उसमें से पांच रत्न निकलवाये और उनके गुण बतलाते हुए कहा-प्रियतम ! ये पांच रत्न देवाधिष्ठित हैं, इनसे स्वर्णथाल, प्याला, चरी आदि भरे हुए भोजन, मणि रत्नादि के आभूषण, शयनासन, मूंग गेहूँ आदि धान्य तथा अग्नि रत्न से मिष्टान्न सुस्वादु व्यंजन प्राप्त होते हैं । गगन-रत्न से वस्त्र, वात-रत्न से अनुकूल वायु एवं नीररत्न को आकाश में रखकर पूजा करने से बांछित जल वृष्टि होती है। कुमार अपनी धर्मात्मा पत्नी के गुणों से प्रसन्न हो नीर-रत्न को स्तम्भपर बाँध कर बड़े समारोहसे पूजा की जिससे मेघवृष्टि हुई और लोगों ने अपने समस्त जलपात्र भर लिए। फिर मार्ग में धनधान्य की आवश्यकता पड़ने पर कुमार ने दूसरे रत्नों के प्रभाव से विविध उपकार किये। सब लोग अपने उपकारी उत्तमकुमार का बड़ा आदर करने लगे। समुद्रदत्त ने जब से मदालसा को देखा, वह उस पर मुग्ध होकर उसे प्राप्त करने के लिए नाना प्रकार के घात सोचने लगा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy