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[ २८ ] लगा। मदालसा भी जैन धर्मपरायण और सुशील थी। कवि ने मदालसा के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन १२वीं ढाल में किया है ( देखो पृ० १३५ ) धर्मिष्टा नारी के वर्णन में कवि ने निम्न कवित्त कहा है :नारी मिरगानयन, रंगरेखा, रस राती;
वदे सुकोमल वयण महा भर यौवनमाती । सारद वचन स्वरूप, सकल सिणगारे सोहै,
अपछर जेम अनूप मुलकि मानव मन मोहै । कलोल केलि बहु विध करै, भूरिगुणे पूरण भरी,
चन्द्र कहै जिणधरम विण कामिणी ते किण कामरी। कवि विनयचन्द्र ने यहां प्रथम प्रकाश को १४ ढालों में पूर्ण करते लिखा है कि अपने ज्ञानवृद्धि के हेतु मैंने यह प्रथम अभ्यास किया है। ___ सिद्ध पद का स्मरण और आत्मतत्व के विचारपूर्वक कवि द्वितीय प्रकाश प्रारम्भ करता है। उत्तमकुमार ने बैरी के स्थान में अधिक रहना अनुचित जान कर मदालसा से विदेश गमनार्थ सीख मांगी। उसने कहा-प्रियतम! मैं तो छाया की भांति तुम्हारे साथ रहूंगी और यहाँ मेरे रहने का कोई प्रयोजनभी तो नहीं है। कुमारी ने अपने पाँच रत्न और वृद्धा को साथ लिये और एकमत से तीनों कूप में आ गए । समुद्रदत्त के आदमी उस समय जल निकाल रहे थे तो रस्सी के सहारे तीनों व्यक्ति बाहर निकल आये। लोगों ने कुमार के मुख से सारा वृतान्त ज्ञात कर
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