SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २६ ] तो लोकोपकार के हेतु कुमार स्वयं रज्जु के सहारे कुंए में प्रविष्ट हो गया। उसने देखा कि सोने की जाली से समूचा जल आच्छादित है तो तारों को इधर-उधर करके जल निकालना सुगम कर दिया। उसने लोगों को जल भरने के लिए कहा तो सब लोग कुमार के सद्गुणों की प्रशंसा करते हुए जल भरने लगे। कुमार अपने परोपकारी कृत्य के लिए आत्म-सन्तोष अनुभव करने लगा। ___कुमार ने कुए में कंचनमय सोपान-पंक्ति देखी, वह कौतुकवश उसी मार्ग से आगे बढ़ा और एक भव्य प्रासाद के पास जा पहुँचा जिसके आंगन में रत्न जड़े हुए थे उसकी प्रथम भूमि स्वर्णमण्डित थी दूसरी भूमि में मणिमाणिक और तीसरी में मोती चमक रहे थे इसी प्रकार समृद्धिपूर्ण वह सतमंजिला मकान था। जब कुमार तीसरी भूमि में पहुंचा तो उसने एक वृद्धा को बैठे देखा । वृद्धा ने कुमार को देखते ही कहा-अरे मूर्ख ! तुम यहाँ भ्रमरकेतु राक्षस के घर अकाल मौत मरने के लिए क्यों आये हो ? कुमार ने राक्षस को अपने से पराजित बताते हुए वृद्धा से परिचय व प्रासाद का रहस्य पूछा, तो उसने कहा-यहाँ से राक्षसद्वीप निकट ही है और वहाँ लंकापति भ्रमरकेतु राज्य करता है। उसे अपनी पुत्री 'मदालसा' अत्यन्त प्रिय है जो अद्वितीय सुन्दरी और गुणवती है। एक दिन भ्रमरकेतु ने अपनी पुत्री के विवाह के सम्बन्ध में नैमित्तिक से पूछा तो उसने कहा-इसका पति वह राजकुमार होगा जो तीन खण्ड का अधिपति होगा। नैमित्तिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy