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________________ [ २५ ] नरक परिणामी अनुचित अध्यवसायों को त्याग दो! देवी ने आज्ञा न मानने पर उसे तलवार द्वारा मार डालने की धमकी दी। परन्तु कुमार को अपने निश्चय पर अटल देखकर संतुष्ट चित्त से देवी ने कुमार के शील गुण की स्तवना करते हुए बारह कोटि रत्न वृष्टि की। इसके बाद समुद्र में जाते हुए जहाज देखकर कुमार ने जहाज रोकने के लिए पुकारा। लहकती हुई ध्वजा के संकेत से समुद्रदत्त जहाजों को किनारे लगाकर कुमार से मिला और सारा वृतान्त ज्ञातकर उसे अपने जहाज में बैठा लिया। कुछ दिन में जल समाप्त हो जाने से व्याकुल होकर सभी यात्रियों ने शास्त्रज्ञ निर्यामक से जल प्राप्ति का उपाय पूछा। उसने कहा-थोड़े समय में वेल उतरने पर स्फटिक रत्नमय पर्वत प्रगट होगा जिस पर सुस्वादु जल का कुंआ है। पर वहाँ भ्रमरकेतु नामक अति क्रूर और मांसभोजी राक्षस रहता है। समुद्रदेवता के समक्ष उसने प्रतिज्ञा कर रखी है कि प्रवहण पर आरूढ़ यात्री को वह नहीं मारेगा। इस प्रकार बातें चल रही थी कि इतने में पर्वत प्रगट हो गया। सामने कुँआँ दीखने पर भी भय के वशीभूत होकर कोई नीचे नहीं उतरा । कुमार ने सबको साहस बन्धाकर जल लाने के लिए प्रेरित किया और सब की सुरक्षा का उत्तरदायित्व अपने पर ले लिया। लोगों ने रस्सी बांध कर जलपात्रों को कुए में डाला पर कुँआ जल से भरा हुआ होने पर भी किसी को एक बून्द पानी नहीं मिला। जब राक्षस के भय से कोई कुए में उतरकर जलोद्घाटन के लिए प्रस्तुत नहीं हुआ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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