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[ २१ ] - राजा की राणी लक्ष्मीवती पतिव्रता और चौसठ कलाओं में प्रवीण धर्मिष्ठा सुन्दरी थी। सांसारिक सुख उपभोग करते हुए रानी के गर्भ में शुभ स्वप्न सूचित पुत्र आकर अवतीर्ण हुआ। गर्भकाल पूर्ण होने पर रानी ने सुन्दर पुत्र को जन्म देकर इस दृष्टान्त को चरितार्थ कर दिया कि दीपक से दीपक प्रकट होता है। राजा ने बड़े उत्साह से पुत्र जन्मोत्सव किया घर घर में तोरण लगाये गए, दान दिया गया। दसोटन करने के बाद उत्तम लक्षण वाले पुत्र का नाम उत्तमकुमार रखा गया। उत्तमकुमार चन्द्रकला की भांति धाय माताओं द्वारा पालित पोषित होकर क्रमशः आठ वर्ष का हुआ। राजा ने उसे पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा। थोड़े दिनों में वह सारे छात्रों से आगे बढ़ कर समस्त कला कौशल में निष्णात हो गया।
कुमार बड़ा सदाचारी था, वह सत्यवादी, नोतिवान और दयालु था। वह चोरी, परदारागमन आदि सभी दुर्व्यसनों से विरत, धीर, वीर, गम्भीर दीन दुखियों का उपकारी होने के साथ-साथ अपने इष्ट-मित्रों के साथ खेल कूद में मस्त रहता था।
एक दिन रात में सोये हुए कुमार के मन में विचार आया कि मैं अब तरुण हो गया। इस अवस्था में हाथ पर हाथ धर घर में बैठे रहना कायर का काम है। कहा भी है कि
गुण भमतां गुणवंत नै, बैठां अवगुण जोय वनिता नै फिरिवौ बुरौ, जो सुकुलीणी होय ।
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