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________________ १९६ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि लेई च्यार अक्षौहिणी, सेना तणौ समूह; उत्तम नृप सामौ चल्यो, धरा धड़क बूंह ; ४ उलकापात हुवो वली, थरकै अहिपति ताम; मेरु डिगै सायर चलै, कच्छप थयो विराम ; ५ इत्यादिक अपशुकन तजी, गयौ सनमुख तास ; सीमा से₹ ऊतस्यो, वीरसेन उल्लास ; ६ उत्तम पृथ्वीपति भणी, साम्हो मेली दूत ; - जौ राणी जायौ हुवै, तौ थाजै रजपूत ;७ इम सुणी कोपातुर थयौ, उत्तम नाम नरिंद; वीरसेन ऊपरि अधिक, रूठो जिम असुरिंद ; ८ झंडा दीसै दल तणा, घणा घुरइ नीसाण ; सूरा पूरा सहु थकी, हूवा आगेवाण ; 8 . ढाल-(१०) हो संग्राम राम ने रावण मंडाणौ एहनी मांहो मांहि ते लसकर बे मिलिया, सनद्ध बद्ध संकलीया ; टंकारव लागै नवि टलीया, भड़ सहु कोई मिलीया रे ; १ मा० वाजा रण माहे तिहां वाजै, गरजारव करि गाजै ; लूवरि पिण आवण री लाजै, दल रै सघन दिवाजै हो ; २ मा० हाथी सहु पहिरी हलकारै, हलकंता नवि हारै ; सुँडा दंड सबल विसतारै, मद उनमत्ता मारै हो ; ३ मा० जुगति लड़ण री घोड़ा जाणे, दल में ते दोडाणै ; बापूकार्या बल बहु, टामक वजण टाणें हो ; ४ मा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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