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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई रिण मांड्यो सूरे रस राते, घट भांगै घण घाते ; मन थी महिर तजे मद माते, विचि विचि आवै वाते हो; ५ गड़ गड़ नाल विशाल गडूक, धरणी तुरत धडूकै ; चन्द्र बाण नाखंतां न चूकै, कल कल स्वर करि कूकै हो ; ६ भा० डिगै न पायक भरतां डाके, छल खेले छिलती छाके ; ... ... ... ... ... ... ... ... .''ढाहि चढावै ढाकै हो ; ७ मा० रुख तणी परि पग आरोप, लड़ता रिण नवि लोपै ; चक्षु तणै फुरकारै चोपै, कहर करतां न कोपै हो ; ८ मा० चमकि लगावै वदन चपेटा, लातां तणा लपेटा ; घरहर नै जिम मंडै घेटा, तिम भरी रीस ल्यै भेटा हो ; हमा० कुहक बाण छूटण रै कडकै, अरीयां साम्हा अडकै ; भड़ कायर भाजै तिहां भड़क, त्रेह त्रसै जिम तड़कै हो ; १० मा० वलि बिच मां बंदूक विछूटै, खिण आराबा खुटै; तरवारी त्राछंतां तूटै, सुभटां रो सिर फूटै हो ; ११ मा० अरक छिपायो रज ऊडंती, अंबर जिम ओपंती ; रुहिर खाल तिहां मांहि रहंती, बालारुण वहसंती हो ; १२ मा० असवारै असवार अटक्कै, लल बल लुबि लटक्कै ; संभावै समसेर सटक्के, तोडै, लँड तटक्कै हो ; १४ मां० अंग तणे पोरस्स उमाहे, अरियण ने अवगाहै ; ढालां री ओटा दे ढाहै, सबल सड़ासड़ साहै ; १५ मा० रथ सेती जूटा रथवाला, मुडै नहीं मछराला; मूंछे बल घालै मतवाला, टलि न करै को टाला ; १६ मा०
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