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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १६१ थोड़े काल भण्या घM रे, धरम ध्यान रस लीन ; ख० केवलज्ञान लही करी रे, पोहता मुगति अदीन ; ख० ३ तिण अवसर राक्षसपतो रे, भ्रमरकेतु गुण ठाम ; ख० नैमित्तिक पूछ्यौ वली रे, मुझ वैरी किण ठाम ; ख० ४ ते कहै ताहरी पुत्रिका रे, परणी गयौ जेह ; ख० पंच रतन ताहरा लीया रे, मोटपल्ली छै तेह ; ख० ५ वक्रकूप पाताल मां रे, ते पैठो हसी केम ; ख० पुत्री किम परणी हस्यै रे, नहिं संभीवीय एम ; ख० ६ ज्ञान न थाय अन्यथा रे, नैमित्तक कह्यौ सुद्ध ; ख० तेहनै जीती नवि सकौ रे, जो था तु अति क्रुद्ध ; ख० ७ पहिली शून्यद्वीप मां रे, एकाकी हतो जाम ; ख० तो पण गंजी नवि सक्यौ रे, हिव युद्ध नौ स्य काम ; ख० ८ पंच रतन सुपसाउले रे, तेह थयौ भूपाल ; ख० मिलीयै पासे जाय नै रे, सी करीयइ तसु आलि ; ख०६ वलि सगपण मोटो थयो रे, ते माहरौ जामात ; ख० इम चिंतवि आयौ तिहां रे, मुँकि सकल उतपात ; ख० १० उत्तम नृप सेती मिल्यौ रे, दुविधां टाली दूर ; ख० पुत्री भीड़ी हीय. रे, निरमल बाध्यौ नूर ; ख० ११ मस्तक धारी आगन्या रे, उत्तम नृप नी जेण ; ख० चाल्यो निज नगरी भणी रे, राक्षसपति हरषेण ; ख० १२ ढाल भणी ए आठमी रे, सांभलतां सुख थाय ; ख० विनयचन्द्र महाराय नौ रे, जस जग मांहि सुहाय ; ख० १३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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