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________________ १६२ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि ॥ दहा ॥ तिहां किण सकल सभा मिली, नृप बैठो मन रंग ; छत्र विराजे मस्तके, चामर ढले सुचंग ; १ दूत तिहां एक आवोयो, जास वचन सुपवित्र ; कर जोड़ी नृप आगलै, मेल्ही लेख विचित्र ; २ राजा खोली वांचियो, मन धरि हरख अपार; तेमां स्युं लिखीयो अछ, ते सुणज्यो अधिकार ; ३ ढाल (8) चाल-राजा जो मिले, एहनी, स्वस्ति थी जिनदेव प्रधान, नमीय बणारसी थी बहुमान ; राजा वीनवै, प्रेमातुर इम संभलवै श्री मकरध्वज नृप गुणगेह, सपरिवार सँ धरीय सनेह ; १ मोटपल्ली नामे बेलाकूल, सकल श्रियानौ जे छै मूल ; रा० उत्तमकुमर कुमार आरोग्य, निज अंगज स्नेहपूर्वक योग्य ; २ रा० आलिंगी निज हृदयसरोज, ___घणु घणु प्रेमै रोज ; रा० समादिसति भूपति कल्याण, ___ कुशल अत्र वर्तइ सुविहाण ; ३ रा० साता सुख तणा समाचार, पुत्र तुमे देज्यो निरधार ; रा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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