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[ १४ ] वाल्हा लागौ हो नहिं उपदेश, छांट घड़इ जिम चीगटइ वाल्हा तेतउ, हो न्याय अजेस, कर्म अरि कहो किम कटइ
[धर्मनाथ स्त०] हां रे लाल निज फल तरुवर नवि भखइ,
सरवर न पियइ जल जेम रे लाल पर उपगारइ थाय ते, तुं पिण जिनजी हुइ तेम रे लाल
शांतिनाथ स्त०] "कोइल आंबा गुण लहै रे, पिण स्यु जाणे काग मूरख पशु जाणे नहीं रे, सेलड़ी कड़व मिठास"
[कुंथुनाथ स्त०] "जे खल नई गुल सरिखा जाणइ, ते स्युं नवलो नेह पिछाणइ"
(मल्लिनाथ स्त० ) “देव अवर मीठा मुखे, हृदय कुटिल असमान जाणि पयोमुख संग्रह्या, ते विषकुम्भ समान"
(नमिनाथ स्त०) 'तरू भावइ तउ छइ इकताई, पिण अंब नींब अधिकाई रे पंखी जातइ एकज हुआ, पिण काग कोइल ते जुआ रे'
. (सूरप्रभ स्तवन) महिर बिना साहिब किसउ हो, लहिर बिना स्यउ वाय रे सनेही सहिर बिना स्यउ राजवी हो, इम कलि मांहि कहाव रे सनेही
(संखेश्वर पार्श्व स्त० पृ० ६५) एक हाथइ रे ताली नवि पड़इ रे' (स्वाभाविक पार्श्व स्त० पृ०७४)
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