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'जिम सौ तिम पचास ' 'सौ बाते इक बात' ( बाड़ी पार्श्व स्तवन
पृ० ७१) जिन प्रतिमा स्वरूप निरूपण स्वाध्याय ( पृ० १००) में वायस दुग्ध प्रक्षालन, मुद्गशेलिक घनवर्षण, ऊपरभूमि बीजवपन बधिर प्रमाण कथन, श्वान -पुच्छ, जिम कांजीयक दूध, नदीकिनोरवृक्ष आदि उपमाएँ दी गई हैं। स्वयं जिनेश्वर भगवान की अविद्यमानता में मुमुक्षुओं के लिए जिन प्रतिमा एक पुष्टालंबन है । कविवर जिन प्रतिमा को जिन सदृश उपकारी मानते थे और उसे आमन्य करनेवालों का प्रखरता के साथ निराकरण करने के हेतु इस ३६ गाथा की स्वाध्याय का निर्माण हुआ है । ध्यान के लिए जिन प्रतिमा की उपयोगिता बताते हुए कविवर निम्नोक्त भाव व्यक्त करते हैं :
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'जिन प्रतिमा निश्चयपण, सरस सुधारस रेलि चिंतामणि सुरतरु समी, अथवा मोहनवेलि ६ नेह बिना सी प्रीतड़ी; कंठ बिना स्थउ गान लूण बिना सी रसवती, प्रतिमा बिण स्यउ ध्यान ७ तीर्थंकर पिण को नहीं, नहि को अतिशयधार जिन प्रतिमा नउ इण अरइ, एक परम आधार है' कविवर विनयचन्द्र जैन शास्त्रों के प्रौढ विद्वान थे । उन्होंने ग्यारह अंग सज्झायों में प्रत्येक अंग --आगम का रहस्य बड़ी ही ओजस्वी वाणी में श्रद्धा-भक्तिपूर्वक व्यक्त किया है। इन सज्झायों को गाने से जिनवाणीके प्रति आस्था प्रगाढ़ हो जाती
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