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________________ [ २५ ] 'जिम सौ तिम पचास ' 'सौ बाते इक बात' ( बाड़ी पार्श्व स्तवन पृ० ७१) जिन प्रतिमा स्वरूप निरूपण स्वाध्याय ( पृ० १००) में वायस दुग्ध प्रक्षालन, मुद्गशेलिक घनवर्षण, ऊपरभूमि बीजवपन बधिर प्रमाण कथन, श्वान -पुच्छ, जिम कांजीयक दूध, नदीकिनोरवृक्ष आदि उपमाएँ दी गई हैं। स्वयं जिनेश्वर भगवान की अविद्यमानता में मुमुक्षुओं के लिए जिन प्रतिमा एक पुष्टालंबन है । कविवर जिन प्रतिमा को जिन सदृश उपकारी मानते थे और उसे आमन्य करनेवालों का प्रखरता के साथ निराकरण करने के हेतु इस ३६ गाथा की स्वाध्याय का निर्माण हुआ है । ध्यान के लिए जिन प्रतिमा की उपयोगिता बताते हुए कविवर निम्नोक्त भाव व्यक्त करते हैं : - 'जिन प्रतिमा निश्चयपण, सरस सुधारस रेलि चिंतामणि सुरतरु समी, अथवा मोहनवेलि ६ नेह बिना सी प्रीतड़ी; कंठ बिना स्थउ गान लूण बिना सी रसवती, प्रतिमा बिण स्यउ ध्यान ७ तीर्थंकर पिण को नहीं, नहि को अतिशयधार जिन प्रतिमा नउ इण अरइ, एक परम आधार है' कविवर विनयचन्द्र जैन शास्त्रों के प्रौढ विद्वान थे । उन्होंने ग्यारह अंग सज्झायों में प्रत्येक अंग --आगम का रहस्य बड़ी ही ओजस्वी वाणी में श्रद्धा-भक्तिपूर्वक व्यक्त किया है। इन सज्झायों को गाने से जिनवाणीके प्रति आस्था प्रगाढ़ हो जाती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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