________________
१८२ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि सुख भोगवतां देव तणी परि किणीक अवसर,
श्री जिनपूजा करिवा रे लो ; मा० श्री जिनवर ने मंदिर आवै भावन भावे,
___भवसायर लहु तरवा रे लो; मां० ६ फूल भरी चंगेरी नीकी वंस नली की,
मदन मुद्रित देखी रे लो; मां० उघाड़ी ते हाथे साही लघु अहि माहि,
__ कर करड्यौ सुविशेषी रे लो; मां०७ तन थी नष्ट सकल बल पडीयो भुई तलि अडीयौ
___ इतली मैं कही वातां रे लो ; मां० सत्य प्रत्यज्ञा जो छै ताहरी आस्या माहरी,
पूरो तुझ गातां रे लो; मां० ८ पोतानो निरवाहै कहियौ तिण जस लहीयौ,
उत्तम ते जग माहे रे लो; मां० विवहारी तुझ पुत्री ल्यावौ मुझ परणावी,
उच्छव सुं कर साहै रे लो ; मां ०६ ऊतावलि करि मुझ नै दीजै ढील न कीजै,
जग जस भारी लीजई रे लो ; मां० तिरजंच जो हुं थाहुं राजा करूं दिवाजा,
- रमणी साथि रमीजै रे लो; मां० १० एहवौ कहि मुखि मौन सरागै बैठो आगे,
इतलै राय पयंपै रे लो; मां०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org