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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई
ढाल (५)
धण रा मारुजी रे लो, एहनी पर उपगारी कोइ न दीठो एहवो मीठो, गुणधारी सुविचारी रेलो; म्हारा राजेसरजी रेलो बारी मां जल हेते पहुतौ मन गह गहतो,
दीठी तिहां किण नारी रे लो; १ मदालसा नामै सुकमाली रूप रसाली,
तिहां परणी ते बाली रे लो; मां जाली मां थई बाहर आया नारि सुहाया,
गुणमणिनी आली रे लो ; २ मां
समुद्रदत्त ने वाहण चढीया त्यां थी खंडीयां,
पंच रतन परभावै रे लो; मां० जल इंधण अन्नादिक जोई लोक सकोई, मन मां शाता पावैरे लो अवसर देखी पापी सेठै भुंडी द्रेठे,
; ३ मां०
रामा धन नो रसीयो रे लो; मां० दरीया मांहे नांखी दीधो माठो कीधो,
पड़तो मच्छे ग्रसीयो रे लो ; मां० ४ मगर गलतो कांठौ आयौ धीवर पायौ,
काढ्यौ पेट विदारी रे लो; मां०
तुझ पुत्रि घर देखि नीपजतो आयो चलतो, परणायो तिणवारी रे लो
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मां ५
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