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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई ते जोवा चाली हो ऊमही जिसै, पल्लंक परि सूतो हो कुमर दीठो तिसै ; ११ देखी नै तन नउ हो कीधो पारिखो, रूपइ पणि दिसे हो उत्तम सारिखौ ; १२ फिर पाछी आवी हो कुमरी नै कहै, तुझ पति नै सारिखो ते तो गहगहै ; १३ इम सुणि नै कुमरी हो गाढौ हरख धस्यो, खिण एक तसुरंगई हो मिलिवा मन कस्यो; १४ वलि चित्त मां विचारै हो ए मै स्युकियो, पर पुरुष न जाण्यो हो तेमां मन दीयो; १५ माहरो मन पापी हो कहुँ अवगुण किसा, मन पाछो वाल्यो हो एम कहै मदालसा; १६ चतुराई तेहनी हो जे वहिलो भेद लहै, इम पहिलै ढाल हो विनयचंद्र कवि कहै;१७ ॥ दहा ॥ कुमर कहै निज रमणि नै, कवन हती ते नारि ; आवी नै पाछी वली, ए स्यु थयो प्रकार ; १ मुझ नै खबर पड़ी नहीं, नहिं तो एणी वार ; सगली बातां पूछि नै, सही करत निरधार ; २ अवसर चूकां माणसां, अति पछतावौ होइ ; अवसर चूक सुंदरि, जगमां जलधर जोइ ; ३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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