SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि ढाल (१) दल बादल बूठा हो नदीयां नीर चल्या ; एहनी इम वचनई हो जंपइ कामनी, माहरी ए वाणी हो सांभलि स्वामिनी ; १ परदेशी कोई हो वस्यो त्रिलोचना सुणा, जेहना जस बोलइ हो, नर सहु इक मना; २ गुण मणिनो दरीयो हो भरियो हेजि सुं, जिण हेले जीतो हो सूरिज तेज सुं; ३ सही सेती ताहरउ हो प्रीतम हीज हुसी, दिल साख द्य मांहरो हो तुझ मन उल्हसी; ४ जो अनुमति आपई हो तो तेहनी खबर करूं, ___ मुख मटको देखी हो हीय. हरख धरूँ ; ५ तब कुमरी भाखै हो था ऊतावली, आलस छोड़ी नै हो जा मन नी रली ; ६ तेहनै घरि आइ हो दासी नेह हुँ, - पणि तसु नवि देखै हो मिलवो जेह सु; ७ कहै कुमरी नै हो ताहरौ भाग्य फल्यो, मन नो मानीतो हो वालम आयो मिल्यो ; ८ मुझ नै देखाड़ो हो प्रीतमनु तुम तणो, देखण मन मांहरै हो अलजउ अति घणो; ते कुमरि पयंपई हो सांभलि सहल में, मुझ प्राण पियारो हो सृतो महल में ; १० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy