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________________ १७४ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि ___ ढाल (२) नागा किसनपुरी एहनी प्राणसनेही सुणि मोरी बात, कौतुककारी छै अवदात ; मीठी बात खरी, इण परि भाखै नृप कुँयरी ; हे सुंदरि मुझ नै संभलाइ, सुणतां हीयडौ उलसित थाय १ मी० मुझ थी अधिकी रूप विवेक, परदेसण आई छई एक; बइंन करी मानी मै तास, निश दिन जीव रहै तिण पास; २ मी० नाह वियोगै दुखणी तेह, झूरि कृस कीधो छै देह ; रहै एकान्ते लेइ आवास, धरम ध्यान मन मांहे जास ; ३ मी० दीन हीनन आपै दांन, द्रव्य घणौ देई सनमान ; मी० करुणा आणी करै उपगार, एहवी काइ नहीं संसार ; मो० ४ एतलौ धन नौ दीसै नहीं, क्याई थी काढइ छै सही; मी० तेहनै पासे छै कांइ सिद्धि, खरचतां खूटै नई रिद्धि ; मी०५ एह अपूरव छै विरतंत, मुझ भगनी सो सांभलि कंत; मी० तास सखी ए वृद्धा नारि, तुझ देखी गई एह विचारि ; मी० ६ सांभलि एहवा वचन कुमार, रागातुर हूवौ तिणवार;मी० एहवी छ गुणवंती जेह, मदालसा हुसई नहीं तेह ; मी०७ अथवा नारी सुंदराकार, एहवी घणी छै घर घर बार मी० परस्त्री ऊपरि धरीयौ पाप, धिग मुझ नै निदइ इम आप ; मी०८ किहां थी आय मिलै मुझ नारि, समुद्रदत्त ले गयो निरधार;मी० खोटो मोह करै स्यु थाय, तन मन थी सगलो सुख जाय; मी०६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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