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१५६ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि नेह तणी बांधी तिहां हंसली रे, धसिवा लागी जाम ; सयण कहै तेहनै पासै थकारे, ए तु मत करि काम ; ११ क० तेह तणे वखते तिण रन्न मै रे, आयो पुरुष ज एक ; तिण सेवाल सहु दूरे कियां रे, हंसण नी रही टेक ; १२ क० एक घड़ी मां ते सब तौरे, वलि विहुं थया रे सचेत तु निश्चय जाणे तेहनी परै रे, पिण एम धरि तुं हेत ; १३ क० देखो इण पापी कीधी तिका रे, बीजो न करै कोइ ; कुमरी कहै धिग माहरा रूप नै रे, एहा अनरथ होइ ; १४ क० बीजे अधिकारइं ए सातमी रे, ढाल कियौ प्रतिभास ; विनयचंद्र कहै दुखीयां माणसां रे, घटिका जाय छमास; १५क०
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हा॥
इम विलपंती देखि नै, आवै सेठ निलज्ज ; सुवचन कहै संतोष नै, एहवी करै अरज्ज ; १ मित्र हतो ते माहरै, उत्तमकुमर सुजाण ; हिव तेहनै दीठां विना, छूटै छै मुझ प्राण ; २ ते सरिखा तो पामीय, पुण्य तणे संयोग ; विरह सह्यो जाइ नहीं, जिम घट व्यापै रोग ; ३ ते चिन्तामणि सारिखो, आय चढ्यौ थो हाथ ; पिण जाणौ छो किम रहै, दालिद्री घर आथ ; ४ मन में किण जाण्यो हतो, इण परि थासी अंत ; छट्ठी रात तणा लिखत, ते पणि थायै तंत ; ५
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