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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई
ढाल (७) कागलीयो करतार भणी सी परिलिखु रे, एहनी करम तणी गति को नवि लखै सकै रे, सहु जाणै छै एम ; पिण सयणां रे विरहे हीयड़ो रे, फाटै हो रन सर जेम ; १ क० कुमरी विचारै रहिनै जीवती रे, स्यु करिस्यु निश दीस ; मरण नथी का देतो पापीया रे, फिट भुंडा जगदीस ; २ क० सांभलि सजनी प्रिउ नै पाछलै रे, करिस्यु झपापात ; वारिधि पिण जाणैस्यै प्रीतड़ी रे, जगि रहसी अखियात ; ३ क० इम सुणि ते आकुल थई रे, इण विध जपै रोइ ; काँइ न ऊगै वीरा चांदला रे, एह अधोमुख जोइ ; ४ क० कमल विलासी क्यु विकस्यो नहीं रे, इण तो कर संकोचि ; हीयड़ा आगलि दे प्रीयुड़ा तणौ रे, मांड्यौ सबलो सोच ; ५ क० वलि वनवासी पसुवा हिरणला रे, जोवो मन धरि नेह ; विरह वियोगई नयणां मीचियां रे, तिण कारण कहुं एह; ६ क० इम कहती सहुनै रोवरावियारे, वलि भाखै उपदेश ; होवणहार पदारथ नवि मिटै रे, मकरि मकरि अंदेश ; ७ क० बालमरण मन मां नवि आणियै रे, इण साहस नहि सिद्धि; जैन तणै आगम जे वारियै रे, तिण सरसी अण किद्ध: ८ क० जीवंता मिलसी तुझ नाहलौ रे, पंखी नी परि जाण ; जिम इक हंस सरोवर मां रहै रे, महिला सहित प्रमाण ; ६ क० एक दिवस सर नै कूलै गयौ रे, जिहां बहुला सेवाल; अणजाणंतां मांहि अलूझियौ, कंठइ आयौ काल ; १० क०
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