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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १५७ ढाल (८) चाल :-पाटोधर पाटीयइं पधारो, एहनी सोहागिण रंग रंगीली, तु प्रेम महारस झीली, सांभलि मुझ बात रसीली ; १ हठीली तेहने स्यु अरै, ते नजर थकी थयौ दुरै, हिव मुझ नै थापि हजूरै ; २ ह० तसु जाति पांति नहीं कांई, नहीं कोई जेहनै भाई ; वलि बाप न काई माई ; ३ ह० हुँ तुझ नै आवी मिलीयौ, वीतग दुख सहु टलीयौ, __ घर अंगण सुरतरु फलीयो; ४ ह० माहरै हिव था धणीयाणी, तुहिज मन मांहि सुहाणी, जिम राजा नै पटराणी ; ५ ह. माहरौ घर ताहरै सारै, वलि जो सिर माहे मारे, ___ तो पिण बलिहारई थारै; ६ ह० मुझथी सुख भोगवि नारी, कहियौ करि मोहनगारी, थारी सूरति लागै प्यारी; ७ ह. करतां जो प्रीत न कीजै, तो गाढो अपजस लीजै, वचने कोई न पतीजे ; ८ ह० जे प्रारथीयां निरवासी, जग मां एतलौ ही जरसी, __ सगला नर इम हीज कहसी;ह० वलि जेह करै उपगार, न गणै ते सांझ सवार, सहु बोल नो ए छै सार; १० ह० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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