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________________ [ १० ] की रचना हो पर उसकी प्रति कहाँ पर है इसका निर्देश नहीं होने से हम उसे प्राप्त नहीं कर सके । उत्तमकुमार रास की भी प्रतियां अधिक नहीं मिलती। दो-तीन प्रतियों की ही सूचना मिली जिनमें से १ तिलकविजय भंडार महुआ २ चुन्नीजी भंडार, काशी का उल्लेख जैन गूर्जर कवियों में किया गया था। चुन्नी जी भंडार की कुछ प्रतियाँ आगरा व कुछ प्रतियाँ रामघाट जैन मन्दिर के भंडार बनारस में बँट गई। हमने बनारस हीराचन्द्र सूरिजी को पत्र लिखा पर वहां की सूची में महाराजकुमार चौ० का नाम होने से वे पता नहीं लगा सके अन्त में हमें स्वयं वहाँ जाना पड़ा और कठिनता से पता लगाकर प्रति प्राप्त की। प्रति का उपयोग करने का सुयोग श्री हीराचन्द्रसूरिजी महाराज की कृपा से ही प्राप्त हो सका इसलिए उनके हम विशेष आभारी हैं। इसकी एक प्रति देहला के उपाश्रय, अहमदाबाद स्थित रत्नविजय भंडार में होने का उल्लेख जैन गूजर कविओ के दूसरे भाग में हैं जिसे प्राप्त करने के लिए पत्र व्यवहार किया पर सफलता नहीं मिली। यह चौपाई एक ही प्रति के आधार से सम्पादन की गई अतः कई जगह पाठ त्रुटित रह गया है। ____ चौवीसी, बीसी, ११ अंग सज्झाय आदि रचनाओं की एक प्रति पत्र ३१ की महिमाभक्ति ज्ञानभंडार में मिली थी तदनन्तर आचार्य शाखा भण्डार से २ संग्रह प्रतियाँ व दो फुटकर पत्र प्राप्त हुए जिनमें से प्रथम प्रति २७ पत्रों की कवि के गुरु श्री ज्ञानतिलक द्वारा लिखित हैं इसमें वीसी, चौबीसी, ११ अंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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