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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १४५ बाप अधम छै एहनो, पण एहतो धरमीण मो० आज लगै दीठी नहीं, एहवी नारि प्रवीण मो० १३ मि० बीजै अधिकारै थई, बीजी ढाल विचित्र मो० विनयचंद थास्यै सही, नीर प्रगट सुपवित्र मो० १४ मि०
॥ दूहा ॥
रत्न करंड उतारि नै, काढी नीर रतन्न ; कूवा थंभै बाँधिने, करि नै सबल यतन्न ; १ केसर में कस्तूरिका, कुंकम अगर कपूर ; चढतै मन पूजा करै, भाव सहित भरपूर ; २ झर कर नै वरसै, तिहां, जलद अखंडित धार; जाण्यो उलस्यौ भाद्रवो, ध्वनि गंभीर अपार ; ३ सहु लोके भाजन भस्या, नीर तणौ करि पान ; शीतल तन करि चालिया, धरि निज रक्षकै धांन;४ खुटि गयौ धन धान्य वलि, मारग मांहे नेट ; पृथिवी रतन दियौ तिहां, ना सति नाखी मीट; ५ पांचे रतन तणै बलै, जिहां तिहां पामै जैत ; बीजा ते सहु बापड़ा, कुमर वडौ विरुदैत ; ६ रावल राणा राजवी, गुण आगलि सहु जेर ; जाणौ माणस गुण विना, धूलि तणौ जे ढेर ; ७
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