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________________ १४६ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि ढाल (३) हा चन्द्रवदनी हा मृगलोयण हा गोरी गजगेल च० एहनी सेठ तणै मन मांहि उदधि माँ कुमरी वसै निशदीश ; विरह विलूधो रे विसवावीस ; नलिनी देखि भमर जिम अटक, तिम तसु मिलण जगीस; वि० मुखड़े जपै रे हा जगदीस, सास बैंची नै रे धूणे सीस ; हे गौरी तें ए स्यु कीधौ, मनड़ो लीधो खंच ; वि० ताहरै सरिखी अंतेउर विच, मुझ न लागै अंच ; वि० २ इम विलपतो जाणै जोडु, भावें जिम तिम प्रीत ; वि० एहवी नारी नै जो माणुं, तो न चढे काई चीति ; वि० ३ इम मन धारी तेह विचारी, वचन कहै सुख कार ; वि० कृपा करी इहाँ आवी बैसौ, उत्तम राजकुमार ; वि ४ बात कहौ काई सुख दुखनी, तेवड़ि मुझ नै मीत ; वि० हुँ पण कहिसु माहरा मन नी, ए रूड़ी छै रीति ; वि०५ ताहरा गुण देखी नै रोभयो, रीझ्यौ देखी रूप ; वि० हिव निश्चय सेवक छु ताहरो, तूं मुझ स्वामि अनूप ; वि०६ मोहनगारो तु मछरालौ, सगुणा सिर कोटीर ; वि० तई तो प्रेम लगायो एहवौ, चोल रंग नो चीर ; वि०७ पंचाख्यान मांहे तुझ कह्या छै, मित्र पणेना तीन ; वि० परम मित्र ते प्रथम वखाणौ, रहियै जसु आधीन ; बि०८ द्वितीय भलाई राखै मुख सुं, अवसर पूछे खेम ; वि० तृतीय मिलै मारग चलतां, मित्र तणी विधि एम ; वि०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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