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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई पूठिली परि ते गलगलै, पिण नहीं कोई उपाय ; सगलै जी कहै जल नैं बिना, जीव विछूटौ जाय; १२मा० मन मां कुमर इम चिन्तवै, ए थई तीजी वार; पीड़ा करै छै पापीयौ, विरुयौ कोई वेकार ; १३ मा० अधिकार बीजैए कही, अति भली पहिली ढाल ; इम विनयचंद्र कुमार सुँ, बात कही उजमाल ; १४ मा०
॥ दूहा ॥ इण अवसर कुमरी कहै, सुणि सोभागी कंत ; जिम सहुनो थास्यै भलौ, तिम करिस्यै भगवंत;१ एतौ गलिगलि लोक छै, थायै सबल अधीर ; दे सहु नै आस्वासना, तनिक कोई सधीर ; २ कुमर कहै किम थाय ते, सूका सहुना होठ ; कहिवौ तो दूरे रह्यौ, मरण तणी छै गोठ ; ३ हिव तुं जउ उपगार करि, मेटि सहुनी पीड़, स्यु भाखै छै मो भणी, भांजि दुहेली भीड़; ४ सी राखई छै चित्त मां, गुंगा केरी गाह ; तिम करि माहरी सुन्दरी, जन जंपइ वाह वाह ; ५
ढाल (२)
कन्त तमाखू परिहरौ एहनी डावी नै वलि जीमणी, बात वणै नहीं काय मोरा लाल नीर बिना दरियाव मां, लोक घणु अकुलाय मो० १
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