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________________ १४३ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई पूठिली परि ते गलगलै, पिण नहीं कोई उपाय ; सगलै जी कहै जल नैं बिना, जीव विछूटौ जाय; १२मा० मन मां कुमर इम चिन्तवै, ए थई तीजी वार; पीड़ा करै छै पापीयौ, विरुयौ कोई वेकार ; १३ मा० अधिकार बीजैए कही, अति भली पहिली ढाल ; इम विनयचंद्र कुमार सुँ, बात कही उजमाल ; १४ मा० ॥ दूहा ॥ इण अवसर कुमरी कहै, सुणि सोभागी कंत ; जिम सहुनो थास्यै भलौ, तिम करिस्यै भगवंत;१ एतौ गलिगलि लोक छै, थायै सबल अधीर ; दे सहु नै आस्वासना, तनिक कोई सधीर ; २ कुमर कहै किम थाय ते, सूका सहुना होठ ; कहिवौ तो दूरे रह्यौ, मरण तणी छै गोठ ; ३ हिव तुं जउ उपगार करि, मेटि सहुनी पीड़, स्यु भाखै छै मो भणी, भांजि दुहेली भीड़; ४ सी राखई छै चित्त मां, गुंगा केरी गाह ; तिम करि माहरी सुन्दरी, जन जंपइ वाह वाह ; ५ ढाल (२) कन्त तमाखू परिहरौ एहनी डावी नै वलि जीमणी, बात वणै नहीं काय मोरा लाल नीर बिना दरियाव मां, लोक घणु अकुलाय मो० १ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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