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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि माहरा वालहा, ताहरी न तजुलार, तुंहीयड़ा नुहार; तु यौवन सिणगार, तुं भोगी भरतार ; मा० स्त्री तणै वसि जे पड्या, निश दिवस कथन करेह ; कुमरई वचन मानी लियउ, अविहड़ नेह धरेह ; २ मा० हिव रतन पृथिवी आदि दे, जे च्यार प्रगट प्रधान ; पांचमो गगन तणी परै, सुन्दर नव नव वान ; ३ मा० ते पांच रतन मदालसा, लेई चलै प्रीउ साथि ; स्यु करै रहिने डोकरी, चलितां पकड्यो हाथ ; ४ मा० जण त्रिण एक मतं थई, आव्या कूपक तीर, तिहां समुद्रदत्त ना आदमी, ऊभा काढे नीर ; ५ मा० नीसस्या रज्जु तणै बलै, तीने जणा तिण काल ; मन दीयौ कुमरी मां सहु, निरखि निरखि सुकमाल ; ६मा० कुमर ने पूछे किहां जइ, परणी नवल ए बाल ; अपछर किंवा किन्नरी, अथवा रंभ रसाल ; ७ मा० चिंता करीने तुम तणी, अम्हे रह्या इण हिज ठाम; नयणे निहाली तुम भणी, हरख्या आतम राम ; ८ मा० विरतंत सहु कुमरे कह्यौ जिम थयौ धुर थी मांडि; सापुरुष झूठ कहै नहीं, नेह न नांखै छांडि ; ६ मा. प्रवहण तिहां थी पूरिया, करतां अत्यन्त विनोद; लोकनो कुमरे मन हस्यो, उपजावी आमोद ; १० मा० पाणी बलि पूरौ थयौ, लांघतां कितलौ पंथ ; एहिवं थानक को नहीं, कालै जोई ग्रन्थ ; ११ मा०
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