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________________ १०६ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि रस आसंकाय करई, ज्वर औषध विधि जेम लाल रे! कारिज नइ आलंबता, पृथिवी सुत सुं प्रेम लाल रे ॥४॥ इम संचरता हित धरी, ते स्तुति करि कहइ धन्य लाल रे। ते जग माहे जाणियइ, परतखि पण्डित मन्य लाल रे ॥५॥ ढाल ३ हरिया मन लागउ, एहनी जिण अधिकारइ ऊपनउ, जे अनवस्थित दोष रे । साजन सुणि मोरा। हिव तेहिज विवरणा तणउ, निश्चय करिस्यु पोष रे सा०॥१॥ जउ पूरब विधि मई रहइ, न करइ किम विपरीत रे ।सा०। पिण पासत्थउ ते खरउ, सर्व देश परिणीत रे । सा० ।।२।। ज्ञानादिक गुण जे तजइ, न बदइ मारग सूध रे । सा० । साध तणी निंदा करइ, लोक भ्रमावइ मूध रे । सा० । ३ ।। नवेय वखाणे जे करइ, कल्प वाचनता तेम रे । सा०। साहशता तेहनी लह, कल्पचरणि मइ एम रे। सा०॥४॥ नित्य सिझातर अग्रनइ, आगलि देइ पिंड रे। सा० । जे ल्यइ तिणनइ तिण विधइ, आवश्यक द्यइ दंड रे ।सा०1।। . ढाल ४ मेरे नन्दना, एहनी साधु कहावइ सई मुखइ रे हां, न मिले वचन विवेक । वचन किसा कहुँ। अवलंबन किहां थी ग्रहइ रे हां, इहां छ३ जुगति अनेक । व०॥१।। जे नव कल्ली नवि करै रे हां, उद्यत मुदित विहार । व०। मास दिवस ऊपरि रहइ रे हां, सेषइ काल अपार । व०॥२।। तिण सरिखउ ते दाखव्यउ रे हां, आचारांग मझार । व० । आधाकर्मिक आश्रहइ रे हां, ते ठाणांग विचार । व०॥३।।' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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