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श्री जिन प्रतिमा स्वरूप निरूपण स्वाध्याय
ढाल - १ ते मुझ मिच्छामि दुक्कडं एहनी तें तरे निज मत संग्राउ, सहु नी तजि लाज रे । तिण कारण तुझ नइ कहुं, सुविदित हित काज रे ॥१॥ जिनवर प्रतिमा वंदियइ, मन मां धरि रंग | समकित संकित कारणे, थायइ बहु भंग रे ||२|| जि०|| तुझ न रे कहता स्युँ हवइ, वायस नइ श्रावइ' रे । जउ दुग्ध प्रक्षालियर, पिण धवलता नावइ रे || ३ || जि०|| उपल मुद्गशेलिक तणs, ऊपरि घन बरसै रे । आर्द्र तदपि न हुवइ कदा, तुझ ते गुण फरसे रे || ४ || जि०|| वलि ऊखर धर ऊपर, जउ बीज कउ वाहै रे ।
अंकुर मात्र न नीपजइ, नहु एम सराहैं रे ||५|| जि० बधिर भणी जउको कहर, अनुगामि प्रमाण रे
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पिण तसु मन अहि कांतनी, व्यापकता जाण रे || ६ || जि० श्वान तणी वलि पूंछनउ, दृष्टान्त दृढायौ रे । चित्त मां, आखर ते नायउ रे ||७|| जि०||
पण कुमति तु
ढाल - २ माखी नी देशी
शुद्ध परंपरा मानिय, प्रतिमा नो प्रतिरूप | अज्ञानी। जिन सादृशतायें सही, इम व्यवहार प्ररूप अज्ञानी ||१|| एहि तत्व विचारियइ, जउ क्युं जाणै साच अज्ञानी । अनहित ते ताहरs दिसा, पाच तजी ग्राउ काच अ० ||२||
१ - श्रवणं श्रावस्तेन
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