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________________ ८ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि ॥ एकादशांग स्वाध्यायः ॥ __ढाल-अयोध्या हे राम पधारीया, एहनी अंग इग्यारे मई थुण्या सहेली हे आज थया रङ्ग रोल कि । नन्दी सूत्र मइ एहनउ सहेली हे भाख्यउ सर्व निचोल ॥शा सहेली हे आज वधामणा ॥ पसरी अंग इग्यार नी सहेली हे मुझ मन मंडप वेलि कि । सींचू नेह रसइ करी सहेली हे अनुभव रसनी रेलि ||२|| हेज धरी जे सांभलइ सहेली हे कुण बूढा कुण बाल कि । तउ ते फल लहै फूटरा सहेली हे स्वादई अतिहि रसाल ॥३॥ हर्ष अपार धरी हियइ सहेली हे अहमदाबाद मझार कि । भास करी ए अंगनी महेली हे वरत्या जय जयकार ||४|| संवर सतर पंचावनइ सहेली हे वर्षा रिति नभ मास कि । दसमी दिन वदि पक्ष मां सहेली हे पूर्ण थई मन आस ॥शा श्री जिनधर्मसूरि पाटवी सहेली हे श्रीजिणचन्दसूरीस कि। खरतर गच्छ ना राजीया सहेली हे तस राजइ सुजगीस ॥६॥ पाठक हर्षनिधानजी सहेली हे ज्ञानतिलक सुपसाय कि । 'विनयचन्द्र' कहइ मई करी सहेली हे अंग इग्यार सिज्माय ||७|| इति श्री एकादशांगानां स्वाध्यायः ॥१२॥ संवत् १७६६ वर्षे मिति वैशाख सुदि १४ दिने श्री विक्रमनगरे उपाध्याय श्री हर्ष निधानजी शिष्य पं० ज्ञानतिलक लिखतं ।। साध्वी कीर्तिमाला शिष्यणी हर्षमाला पठनार्थ ॥ श्रीरस्तु ।। शुभभवतु ।। कल्याण मस्तुः ।। श्रेयांति प्रवर्ततां ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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