________________
[ 8 ]
वंशाख सुदी १४ को बीकानेर में साध्वी हर्षमाला के लिए प्रतिलिपि की हुई एकादशांग स्वाध्याय की प्रशस्ति इसी ग्रन्थ के पृ० ६८ में प्रकाशित है।
हर्षनिधानजी के तृतीय शिष्य पुण्यतिलक थे जिनके शिष्य महोपाध्याय पुण्यचन्द्र हुए। इनके शिष्य पुण्यविलासजी ने अपने शिष्य पुण्यशील के आग्रह से सं० १७८० में मानतुंग मानवती रास ( ढाल ५० गाथा १४४२ ) लूणकरणसर में निर्माण किया जिसकी दो प्रतियां लालभवन, जयपुर में है । पुण्यविलासजी के दूसरे शिष्य मानचन्द्र थे । नन्दीपत्रानुसार इनकी दीक्षा सं० १७७४ को पत्तन में हुई थी इसमें पं० माना पं० पुण्यशील लिखा है अतः पुण्यशील और माना एक ही व्यक्ति प्रतीत होते हैं । सं० १८०४ वाला उपर्युक्त गुटका इन्हीं मानचन्द्र द्वारा लिखा हुआ है जिसमें कविवर समयसुन्दरजी की कृतियाँ और विनयचन्द्रजी की चार कृतियाँ लिखी हुई है। प्रशस्ति इस प्रकार है : -- 'सम्वत् १८०४ वर्षे मिति माह बदि १ तिथौ जंगम युगप्रधान पूज्य भट्टारक श्रीमच्छी जिनचन्द्रसूरी श्वराणां शिष्य मुख्य पंडितोत्तम प्रवर सकलचन्द्रजी गणि शिष्य महोपाध्याय श्री ५ | श्री समयसुन्दरजी गणि । शिष्य मेघविजयजी गणि । वाचकोत्तम वर हर्षकुशलजी गणि । पाठकोत्तम हर्षनिधानजी शिष्य दक्ष पुण्य तिलकजी गणि । महोपाध्याय श्री
१ - देखो बीकानेर जैन लेख संग्रह लेखांक २०८० । २ - देखो बीकानेर जैन लेख संग्रह लेखांक २०५३ ।
----
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org