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[ ३ ] ज्ञानपयोधि प्रबोधवा रे, अभिनव ससिहर प्राय ; सु० कुमुदचन्द्र उपमा वहै रे, समयसुन्दर कविराय ; ८ सु० तत्पर शास्त्र समर्थिवा रे, सार अनेक विचार ; सु० वलि कलिंदिका कमलनी रे, उल्लासन दिनकार ; ६ सु०
इनके शिष्य विद्यानिधि वाचक मेघविजय हुए। जिनके शिष्य हर्षकुशल भी अच्छे विद्वान थे जिन्होंने विहरमान बीसी का रचना करने के अतिरिक्त महोपाध्याय समयसुन्दरजो को ग्रन्थरचना में भी सहाय्य किया था । इनके शिष्य उ० हर्षनिधान हुए जिनकी चरणपादुकाएं सं० १७६७ मिति आषाढ़ सुदि ८ के दिन शिष्य वा० हर्षसागर द्वारा प्रतिष्ठित बीकानेर रेल दादाजी में विराजमान है। हर्षनिधानजी के लिए कविवर ने लिखा है कि ये अध्यात्म-योगी थे, यतः
'परम अध्यातम धारवा रे जो योगेन्द्र समान ।' इनके तीन शिष्य थे, प्रथम वा० हर्षसागर द्वारा सं० १७२६ का० कृ०६ को लिखित पुण्यसार चतुष्पदी ( सेठिया लाइब्ररी, बीकानेर ) प्राप्त है। इनकी चरणपादुकाएँ भी सं० १७८४ वै० सु० ८ सोम के दिन प्रतिष्ठित बीकानेर के रेल दादाजी में है । इनके नयणसी व प्रतापसी नामक दो शिष्य थे । हर्षनिधानजी के द्वितीय शिष्य ज्ञानतिलक व तीसरे पुण्यतिलक थे ये तीनों साहित्यादि ग्रंथों के विद्वान थे। ज्ञानतिलक रचित ३-४ स्तोत्र व फुटकर संग्रह का गुटका विनयसागरजी के संग्रह में है । कविवर विनयचन्द्र इन्हीं ज्ञानतिलकजी के शिष्य थे। सं० १७६६ मिती
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