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[ २ ] उनको राजिमती रहनेमि सझाय को सन् १६२६ ता० १३ जन में आगरा से प्रकाशित होनेवाले श्वेताम्बर जैन वर्ष ४ अंक २५ में प्रकाशित किया गया उसके बाद खरतर गच्छ के वृहद् ज्ञानभण्डार का अवलोकन करते हुए महिमाभक्ति भण्डार के बं० नं० ३७ में विनयचन्द्रजी की चौवीसी, बीसी, सज्झायादि की ३१ पत्रों की संग्रहप्रति प्राप्त हुई और जैन गुर्जर कविओ दूसरा भाग सन् १६३१ में प्रकाशित हुआ उसमें आपके रचित उत्तमकुमार चरित्ररास, ध्यानामृतरास, मयणरेहा रास, ११ अंग सज्झाय, शत्रुजय तीर्थयात्रा स्तवन का उल्लेख प्रकाशित हुआ था। हमने आपको प्राप्त समस्त रचनाओं की सूची देते हुए कविवर विनयचन्द्र नामक लेख प्रकाशित किया जिसमें नेमिराजुल बारहमासा भी दिया था। कवि की रचनाओं की संग्रह प्रति से तभी हमने प्रेस कापी तैयार कर रख दी थी जिसे प्रकाशित करने का सुयोग अब प्राप्त हुआ है। गुरु परम्परा
खरतरगच्छ की सुविहित परम्परा में मुगल सम्राट अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान श्री जिन चन्द्रसूरि प्रसिद्ध और प्रभावक आचार्य हुए हैं। उनके प्रथम शिष्य सकलचन्द्र गणि के शिष्य अष्टलक्षो कर्त्ता महोपाध्याय समयसुन्दरजी की विद्वद् परम्परा में कविवर विनयचन्द्र हुए हैं । कविवर स्वयं उत्तमकुमार चरित्रचौरई में अपनी गुरु परम्परा का परिचय देते हुए लिखते हैं कि महोपाध्याय समयसुन्दरजो भारी प्रकाण्ड विद्वान थे जैसे
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