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कविवर विनयचन्द्र और उनका साहित्य
संसार में दो तरह के प्राणी जन्म लेते हैं । कुछ जन्मजात प्रतिभासम्पन्न होते हैं और कुछ परिश्रमपूर्वक प्रतिभा का विकास करते हैं। साहित्यकारों में भी हम उभय प्रकार के व्यक्ति पाते हैं । कई कवियों की कविता में स्वाभाविक प्रवाह होता है, शब्दावली अपने आप उनकी कविता में रत्नों की भाँति आकर जटित हो जाती है जो पाठकों को मुग्ध कर लेती है। कई कवियों की रचनाए शब्दों को कठिनता से बटोर कर संचय की हुई प्रतीत होती है। सुकवि विनयचन्द्र प्रथम श्रेणी के प्रतिभासम्पन्न कवि थे, जिनकी उपलब्ध रचनाओं का संग्रह प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रकाशित किया जा रहा है ।
बत्तीस वर्ष पूर्व राजस्थान के महाकवि समयसुन्दर की रचनाओं का अनुसंधान करते हुए बीकानेर के श्री महावीर जैन मण्डल में सं० १८०४ का लिखा हुआ एक गुटका प्राप्त हुआ जिसमें समयसुन्दरजी की अनेक फुटकर रचनाओं के साथसाथ उनकी परम्परा के कुछ कवियों की भी रचनाएँ मिली । सुकवि विनयचन्द्र महो० समयसुन्दरजी की परम्परा में ही थे और उस गुटके के लिखनेवाले भी उसी परम्परा के थे अतः विनयचन्द्र की भी ४ रचनाएँ इस प्रति में प्राप्त हुई जिनमें से नेमिराजुल बारहमासा और राजिमतीरहनेमि सझाय नामक उत्कृष्ट रचनाओं ने हमें इस कवि के प्रति विशेष आकृष्ट किया
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