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स्थूलिभद्र सज्माय नित पालै पंचाचार, षटकाय रक्षा करै सार। उज्ज्वल उत्तम व्रत धार ।। रा०॥ ८॥ धन नगरी नइ धन देश, जहाँ सहगुरु करै निवेश । कीरति जग में सलहेस । रा०॥६॥ वंदो भवियण हित आणी, पूजजी नी मीठी वाणी। साँभलतां अमिय समाणी रा०॥१०॥ मानइ जेहनइ राण राया, प्रणमीजै प्रहसम पाया। मुनि 'विनयचन्द्र' गुण गाया ॥रा०॥११॥
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