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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि श्री स्थूलिभद्र मुणिंदना, भणीया बारहमासो जी। नवरस सरस सुधा थकी, सुणतां अधिक उल्लासो जी ।। उल्लास धरि ऋषिराज गायो, जिण रखायउ जगतमां । निज नाम अति अभिराम चुलसी, चउवीसीशीलवंतमा ।। गुरुराज हर्षनिधान पाठक, ज्ञानतिलक प्रसाद सुं। गुर्जरा मंडन राजनगरइं, 'विनयचंद्र' कहइ इसु ॥१३॥
॥ श्री जिनचंद्रसूरि गीतम् ॥ बड़ बखती गुरु नित गाजै, वलि दिन दिन अधिक दिवाजै। सहु गच्छपति सिर छाजै ॥१॥राजेश्वर पाटियइ पाउधारउ। इक वीनतड़ी अवधारो पाटोधर० श्रीसंघना वंछित सारउ ॥रा० श्रीजिनधर्मसूरीसर पाटइं, पूज्य थाप्या घणै गहगाटइं। नर नारी आगै जुड़े थाटई ॥रा०॥२॥ वंशे बहुरा सिरदार, तात सांवलदास मल्हार । माता साहिबदे उरि हार ॥ रा० ॥ ३ ॥ हंस परि माधुरी सी चाल, अति अद्भुत रूप रसाल। मारग मिथ्यात उदाल । रा०॥४॥ तेजे करि जाणे सूर, शशिधर परि शीतल पूर। जसु निलवट अधिकउ नूर ।। रा०॥५॥ नित नित चढती कला राजइ, युगवर जिनचंद विराजइ । जसु भेट्यां भव दुख भाजइ ॥ रा०॥६॥ छतीस गुणे करि सोहइ, गुरु भविक तणा मन मोहइ । जगि इण समवड़ नहिं कोहै ।। रा०॥७॥
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