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ग्यारह अंग समाय (१) श्री आचारांग सूत्रसज्झाय
देशी-हठीला वयरी नी पहिलो अंग सुहामणो रे, अनुपम आचारांग रे सगुणनर वीर जिणंदइ भाखीयउ रे लाल, उवाई जास उपांग रे सगुणनर। बलिहारी ए अंगनी रे लाल, हूं जाउं वार वार रे स० विनय गोचरी आदि दे रे लाल,
जिहां साधु तणउ आचार रे स० ब०। आंकणी।। सुयक्खंध दोइ जेहना रे, प्रवर अध्ययन पचीस रे स० उद्देशादिक जाणियइ रे लाल, पंच्यासी सुजगीस रे स० ब०। २॥ हेत जुगति करी सोभता रे, पद अढार हजार रे स० अक्षर पदनइ छेहड़इ रे लाल, संख्याता श्रीकार रे स० ब०॥ ३॥ गमा अनंता जेहमां रे, वलि अनन्त पर्याय रे स० त्रस परित्त तउ छ इहां रे लाल, थावर अनन्त कहाय रे स० ॥४॥ निबद्ध निकाचित शासता रे, जिन प्रणीत ए भाव रे स० सुणतां आतम उल्लसइ रे लाल, प्रगटइ सहज सभाव रे स० ॥शा श्रावक वारू श्रावका रे, अंग धरी उल्लास रे स० विधिपूर्वक तुम्हें सांभलउ रे, लाल गीतारथ गुरू पास रे स०॥६ ए सिद्धान्त महिमा निलौरे, ऊतारइ भव पार रे स० 'विनयचन्द्र' कहइ माहरइ रे लाल एहिज अंग आधार रे स०॥७॥
॥इति श्री आचारांगसूत्र स्वाध्यायः॥
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