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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि
तीन छत्र सिर शोभता रे, चामर ढाल इन्द्र ।
तुम प्रभुता देखी करी, मोह्या सुर नर नइ नागेन्द्र ||१०|| गो०|| अपछर ल्याइ तुझ भामणा रे, करती नाटक जोर । तारौ तारौ पास जी रे, ऊभी करइ निहोर ॥११॥ गो० ॥ चाकर केरी चाकरी रे, प्रभु आणौ मन मांहि । वाल्हेसर सुप्रसन्न थी, धरि हेत ग्रहउ मोरी बांहि ||१२|| गो० ॥ तुझ सूं लागी मोहणी रे, बीजां सँ नहि काम | सह जोवौ साहिबा, आवौ आवौ आतम राम ॥ १३ ॥ गौ० ॥ योगी भोगी तुझ भणी रे, ध्यावै नित एकान्त । मुगति रमणि रस रागीयौ, तु नीरागी भगवन्त ||१४|| गो० ॥ अश्वसेन नृप कुल तिलौ रे, वामादेवी कौ नन्द ।
ते साहिब नइ वीनती, इम वीनवर 'विनयचन्द' ||१५||गो० ॥
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॥ श्री पार्श्वनाथ स्तवनम् ॥
राग - सारंग
माई मेरे सांवरी सूरति सु प्यार || मा०|| जाके नयन सुधारस भीने, देख्यां होत करार || मा०||१||
जासौं प्रीति लगी है ऐसी, ज्यों चातक जल धार ।
दिल में नाम वसै त निसदिन, ज्यु हियरा मई हार || मा०||३||
पास जिनेसर साहिब मेरे, ए कीनी इक तार । विनयचंद्र कहै वेग लहुं अब, भव जल निधि कौ पार || मा०||३||
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