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________________ श्रीगौड़ी पार्श्वनाथ वृहत्स्तवनम् ॥ श्रीगौड़ी पार्श्वनाथ बृहत्स्तवनम् ॥ राग - मल्हार नाम तुम्हारौ सांभली रे, जाग्यउ धरम सनेह | तदिन दिन ऊलटइ रे, मानुं पावस ऋतु नउ मेह ||१|| गोड़ी पासजी हो, ज्ञानी पासजी हो, अरज सुणउ इण वार ॥ तुम पासे आव्या तणौ रे, अधिक ऊमाहउ थाय । पिण स्युं कीजइ साहिबा, आव्या नै छै अन्तराय ||२||गो०|| ते माटइ करिनइ मया रे, आणी मन उपगार । आवी नइ मुझ थी मिलउ, दरसण द्यौ इकवार ||३|| गो० || तुझ जेहवउ वलि कुण छइरे, अवसर केरौ जाण । निज अवसर नवि चूकियइ, करौ सेवक वचन प्रमाण || ४ | गो० ॥ तीन भवन मां ताहरौ रे, झलकइ निरमल तेज । सूरति देखी ताहरी वाल्हा, हसता आवै हेज ||५|| गो० ॥ तुझ मुख मटकउ अति भलौरे, जाणइ पूनिमचन्द | आंखड़ी कमलनी पांखड़ी, शीतल नइ सुखकन्द || ६ || गो० ॥ दीपशिखा सम नासिका रे, अधर प्रवाली रंग । दंत पंकति दाडिम कुली, दीपs अंग अनंग ||७|| गो०|| मुकुट विराजs मस्तकइ रे, कांने कुण्डल सार । बांह बाजूबन्द बहिरखा, हीयड़इ मोती नउ हार ||८|| गो० ॥ नील वरण शोभा वणी रे, अहि लंछन अभिराम । तुझ सारीखो जगत मां, वाल्हा रूप नहीं किण ठाम ||६|| गो० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ६६ www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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