________________
६८
विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि तुं उपगारी एक, त्रिभुवन माहइ हो,
सगुणा साहिब मई लाउ रे । आव्यौ धरिय विवेक, हिवइ तुझ सरणउ हो,
सगुणा साहिब संग्राउ रे ॥३॥
सरणागत साधारि, विरुद सम्भारी हो,
सगुणा साहिब आपणौ रे। भवसायर थी तारि, तुझ नइ कहियइ हो,
सगुणा साहिब स्युं घणउ रे ।।४।। साहिब नइ छइ लाज, निज सेवक नी हो,
सगुणा साहिब जाणिज्यो रे। मेलउ दे महाराज, वचन हीयामई हो,
सगुणा साहिब आणिज्यो रे ॥५॥ लाड कोड मावीत, जो नवि पूरइ हो,
सगुणा साहिब प्रेम सुरे। तो कुण राखइ प्रीति, तउ कुण पालइ हो,
सगुणा साहिब खेम सुरे।।६।। पास जिणेसर राजि, पदवी आपउ हो,
सगुणा साहिब ताहरी रे। कहै विनयचन्द्र' निवाजि, अरज मानेज्यो हो,
सगुणा साहिब माहरी रे ॥७॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org