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श्री वाड़ी पार्श्वनाथ लघुस्तवनम्
॥ श्री वाड़ी पार्श्वनाथ लघुस्तवनम् ।। लांध्या गिरवर डुंगरा जी, लांध्या विषम निवास । ते दुख तुझ भेट्यां गयां जी, सांभलि वाड़ी पास ॥१॥ परमगुरु माहरै तुम्हसु प्रीति । पामि सगुण तो सारिखा जी, निगुण न आवै चीत ॥
२०॥ नयणे निरख्यां चाहसँ जी, भलो थयो परभात । मन मेलू जो तु मिल्यौ जी, उल्हस्यौ माहरौ गात ॥३॥५०॥ तई तो कल का फेरवी जी, तन मन ताहरइ हाथ । खरी कमाई माहरी जी, हिव हुँ थयौ सनाथ ॥४॥५०॥ अलवि करै अराधतां जी, वायें बादल दूर। एह विरुद सम्भारि नै चित चिंता चकचूर ॥शाप०॥ सकज अछै तूं पूरिवा जी, घणा हरख नै लाड । जाइ अनेरा आगलै जी, किसौ चढ़ावू पाड ॥६पा०॥ वचने लागइ कारिमौ जी, लाख गुणे ही नेह । दिल भर दिल तेवै छतो जी, जिम बावईयै मेह ॥७॥१०।। प्रस्तावै ऊपर करै जी, वलती ए अरदास । दरसण दे संतोषजे जी, जिम सौ तिम पंचास प०॥ मत बीसारेज्यो हिवै जी, सौ वाते इक वात । अवगुण गुण करि लेखज्यो जी, विनयचंद्र जगतात पा०॥
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