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शत्रुञ्जय स्तवन
त्रिभुवन नउ. : मोहनगारउ,
राजि तिणि लागइ मुझ नइ प्यारौ ।राजि० ॥३॥ तुझ नइ देखी दिल फूली,
राजि तुझ पास सदा रहइ झूली। राजि० । मुझ नइ निज सेवक जाणी,
. राजि मुझ तारउ करुणा आणी। राजि० ॥६॥ मई तउ पूरब पुण्यइ पाया,
. राजि प्रभु चरणे चित्त लगाया। राजि०। श्री ऋषभ जिणंद जगराया,
विनयचन्द्र हरख सुं गाया राजि० ॥ ७ ॥
.. ॥श्री शत्रुजय मंडन ऋषभदेव स्तवनम् ॥
ढाल-माखीनी
वात किसी तुझनइ कहुं, मुझ नइ आवइ लाज ऋषभजी। विगर कह्यां मन नवि रहइ, हिव सांभलि जिनराज मृ०॥१॥ हुं माया मोहीयउ, मइ कीधा पर द्रोह । ऋ०। अधम तणी संगति ग्रही, न रही संयम सोह । ऋ० ॥२॥ मूझि रहयउ संसार में, न धर्यो ताहरउ घ्यान । मृ०। ... परमारथ पायउ नहीं, भरियउ घट मां मान । ऋ० ॥३॥
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