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शत्रुञ्जय यात्रा स्तवन
~~~~~~~~ ~~~ निरखी अद्भुत भेटिये, - अति प्रसन्न हुवे चित्त मोरा लाल ॥१६॥से०॥ हारे मोरा लाल पांडव पांचे प्रणमियै,
अजित शांति जिनराय ॥ मो० ॥ टुंक शिवा सोमजी तणो,
तिहां चोमुख भेटो आय मोरा लाल ॥१७॥से॥ हारे मोरा लाल गिरि तल से@जी नदी,
जोवो . आणि विवेक ।। मो० ॥ इणि परि विमलाचल तणी,
तीरथ भूमि अनेक मोरा लाल |१८। से०॥ हारे मोरा लाल पाजे पाजे ऊतरी,
तलहटी जिन परसाद ॥ मो० ॥ . . स्नात्र महोच्छव कीजीए,
टाली पंच प्रमाद मोरा लाल ॥१६॥से०॥ हारे मोरा लाल एगिरिनी गुण वर्णना,
करतां नावै पार ॥ मो० ॥ सीमंधर सामी सेंमुखै,
महिमा कही अपार मोरा लाल ॥२०॥से०॥ इम भक्तिपूर्वक युक्ति सेती, थुण्यो सेनूंजा तीथे नइ । संवत सतर पंचावनइ वर, पोष वदी दसमी दिनइ ।। श्रीपूज्य जिनचन्द्रसूरि पाठक, हरषनिधान हरषइ घनइ। परिवार सों जिन यात्र कीधी, विनयचन्द्र' इसु भणइ ॥२१॥
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