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विहरमान जिनवीसी
|| श्री वीरसेन जिन स्तवनम् ॥ राग - कड़खानी
जय वीरसेना भिधो जिनवरो जग जयो, वीरसेना थकी सुयश द्रव्य गुणवाद रण तूर नादई करी,
पायउ ।
शुद्ध उपदेश पड़हउ बजायउ || १|| ज० ॥ मद मदन मान मुख अटिल जे उंबरा, मोह महीपति तणा अचल अप्रमत्तता शक्ति गुण गण करी,
जे प्रसिद्धा ।
सौर्य सन्नाह
विविध प्रहरण करी जेर कीधा ॥२॥ ज० ॥ तन टोप गम्भीर्य्यता, वीर्य गुण वेदिका सुमति बन्दूक तप दारु गोली गुपति,
अति कपट कोट नई चोटि कीधी ||३|| ज० ॥ रागनइ द्वेष बे तनुज मोह भूपना, तेह सुं सबल संग्राम सहज उदासता शक्ति बल अधिक थी,
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ओटिली
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मोह मिथ्यात नउ पक्ष खण्ड्यउ ||४|| ज० ॥ कुमर भूमिपाल भूपाल नउ दीपतऊ, भानुमति नन्द
आनन्ददाई |
वृषभ लन्छन गुणी भुवन चूड़ामणि, कवि 'विनयचन्द्र' जस कीर्ति गाई || ५ || ||
मण्ड्यउ ।
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