SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि ॥ श्री नेमिप्रभ स्तवनम् ॥ ढाल-हीडोलणारी, कर्म हीडोलणइ माई झूलइ चैतनराय हर्ष हीडोलणइ झूलइ, नेमिप्रभ जिनराय । जिहां शुद्ध आशय भूमि पटली, सोहियइ थिरवाय । तिहां ज्ञान दर्शन थंभ अनुभव, दिव्य भाउ लसाय ॥ उपदेश शिख्या सहज संकलि, विविध दोर बनाय । सौंदर्य समता भाव रूपइ, हींचितां सुख थाय ॥१॥ ह०॥ जिहां चरण शोभा भाव चामर, चतुरता बींझाय । व्रत सुमति गुपति प्रतीत आली, रहत हाजरि आय ॥ परपक्ष गुण शुभ वायु सँधा, परिमलइ महकाय। तिहां भगति जुगति विवेचनादिक दीपिका दीपाय ॥३।। ह. सबोध तकीया तखत शुभ मति, विभवना समुदाय । अनुपाधि भाव सुभाव चित्रित महित मन वचकाय ।। जिहां सहज समकित गुण सुबन्धित, चंद्र आ चितलाय । शम शील लील विलास मंडित, मंडपइ धृति दाय ॥३॥ ह. कर कमल जोड़ी करइ सेवा, नाकि नाथ निकाय । सुर असुर नरवर हष भरि, सम्मिलित राणा राय ।। अनुभाव जेहनइ वैर विड्डुर, दुरित दुख पुलाय । धन धन्न प्रभु कृतपुण्य जय जय, सबद गीत गवाय ॥४।। ह०॥ वीरराय कुल अभ्र दिनमणि, सुयश तिहुअण छाय । जसु सूर लंछन वरण कंचन, सुभग सेना माय ॥ भवि जीव बोहइ चित्त मोहइ, ज्ञानतिलक पसाय ॥ कवि विनयचन्द्र' प्रमोद धरि नई, देव ना गुण गाय ॥५॥ ह० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy