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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि
॥ श्री महाभद्र जिन स्तवनम् ॥ ढाल- चँवर ढुलावइ हो गजसिंह रौ छावौ महुल में जी साहिब सुणियइ हो सेवक वीनति जी,
श्री महाभद्र जिणंद । मुझ मन मधुकर हो नित लीणउ रहे जी,
प्रभु पदकज मकरन्द ॥१॥सा०॥ एह अनादि हो अनन्त संसार मंइ जी,
तुम्ह आणा बिन स्वामि । जे दुख पाम्या हो नाम लेई स्यु कहुँ जी,
फरस्या सवि भवि-भवि ठामि ॥२सा०॥ अविरत अव्रत हो परवश नइ गुणें जी,
मोह नृपति नइ जोर । कमै भरम नइ हो जाल अलूझियौ जी,
___चंचलता चित चोर ॥३||सा०॥ हुँ निज बीती हो बात शी दाखवू जी,
जाणउ छउ जिनराय । तारक विरुद हो वहियइ आपणौ जी,
बांह ग्रह्यांनी लाज ||४||सा०॥ देवराय नृप नउ हो कुँअर दीपतउ जी,
____ उमा देवी जसु माय । सिंधुर वंछन हो वरणइ कंचनइ जी,
'विनयचन्द्र, सुखदाय ॥शासा०॥
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