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आमुख
भगवान महावीर के आत्म-विज्ञान से आत्म-जागृति एवं क्रान्ति भगवान ने उद्घोष किया था कि प्रत्येक आत्मा सत्ता की अपेक्षा चेतना शक्ति की अपेक्षा परमात्मा तुल्य है। अतः जो आत्मा अपनी सत्ता एवं शक्ति को पहचान कर श्रद्धा पूर्वक तदनुकूल अपने विचार एवं आचार को मोड़ ले तथा अपनी चित्तवृति को आत्मसम्मुख कर ले, वह परमात्मा बन सकता है। भगवान ने यह भी बतलाया कि जैसे तुम्हारी आत्मा मनुष्य शरीर में वास करती है, वैसे ही पशु, पक्षी, मछली रूप शरीर में अन्य आत्माएं वास करती हैं, तथा पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय भी वैसे सत्ताधारी, अनंत-अनंत जीवों का वास स्थान है। . अपने नश्वर देह की सुख सुविधा के लिये भी अन्य प्राणियों की अनर्थक हिंसा न करो, ऐसा कार्य काया से वचन से न करो जिससे उन्हें संताप कष्ट पहुँचे और मन से भी किसी की बुराई मत सोचो, क्योंकि मन के अशुभ विचार से पाप बंधता है, शुभ विचार से पुण्य और शुद्ध परिणाम से कर्मों की निर्जरा होती है, इसलिये शास्त्रों में कहा है कि मनुष्य का मन ही शुभाशुभ भाव से कर्म बंध कर लेता है, और असार संसार में भटकता है, तथा शुद्ध भाव से कर्मों को क्षय कर मुक्त होता है।
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