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गौतम रास : परिशीलन
में पालनपुर में हुआ था । यही सोमप्रभ श्रागे चलकर दादा जिनकुशलसूरिजी के चौथे पाट पर जिनोदयसूरि के नाम से गच्छनायक बने थे ।
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विनयप्रभ कहाँ के निवासी थे ? माता-पिता का क्या नाम था ? आदि उल्लेख प्राप्त नहीं हैं । अधिक सम्भावना यही है कि ये खंभात के ही निवासी हों ।
क्षमा कल्याणीय पट्टावली के अनुसार तत्कालीन गच्छनायक जिनलब्धिसूरि जो कि विनयप्रभ के सहपाठी भी थे, ने इन्हें उपाध्याय पद प्रदान किया था । पट्टावली में संवत् का उल्लेख नहीं है, तदपि अनुमान है कि वि. सं. १३९४ और १४०६ के मध्य ही ये उपाध्याय बने होंगे ।
वि. सं. १४३१ में आचार्य जिनोदयसूरि ने वयोवृद्ध गीतार्थप्रवर लोकहिताचार्य जो उस समय प्रयोध्या में विराजमान थे, को एक विशाल एवं श्रेष्ठ विज्ञप्ति महालेख भेजा था । उसमें उल्लेख आता है-
मंत्रीश्वर वीरा और मंत्रीश्वर सारंग ने सं. १४३१ में नरसमुद्र से सिद्धाचल का यात्रा संघ जिनोदयसूरि की अध्यक्षता में निकाला था । यह संघ प्रयाण करता हुआ घोघावेलकुल ( घोघा बन्दर) स्थान पर पहुँचा और तत्र स्थित नवखण्ड पार्श्वनाथ की पूजा-अर्चना की । घोघा में ही विराजमान महोपाध्याय विनयप्रभजी से मिलकर गच्छनायक जिनोदय सूरिजी हर्षविभोर हो उठे । मिलन के हर्षातिरेक का वर्णन
1. विज्ञप्ति लेख संग्रह प्रथम भाग
संपादक - मुनि जिनविजय
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