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गौतमरासकार महो० विनयप्रभ
गौतम रास के प्रणेता महोपाध्याय विनयप्रभ सुविशुद्ध खरतरगच्छ की परम्परा में हुए हैं । ये प्रकट प्रभावी युगप्रधान पदधारक दादा जिनकुशलसूरि जी के स्वहस्त दीक्षित शिष्य थे । इनके सम्बन्ध में यत्र-तत्र जो स्फुट उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे हैं:
खरतरगच्छालंकार युगप्रधानाचार्य गुर्वावली (पृ. ७६) के अनुसार वि. सं. १३८२ वैशाख सुदि ५ के दिन भीमपल्ली (भीलडियाजी) में साधुराज वीरदेव सुश्रावक कारित दीक्षा, मालारोपणादि नन्दी महामहोत्सव के समय, जिनकुशलसूरिजी ने इनको दीक्षा प्रदान कर इनका विनयप्रभ नामकरण किया था। इसमें विनयप्रभ के लिये क्षुल्लक शब्द का प्रयोग किया गया है, अतः क्षुल्लक शब्द बाल्य/किशोर अवस्था का बोधक होने से अनुमान कर सकते हैं कि दीक्षा ग्रहण के समय विनयप्रभ की अवस्था १० से १५ वर्ष की होनी चाहिए । फलतः इनका जन्म १३६७ से १३७२ के मध्य हुअा हो, ऐसी कल्पना कर सकते हैं।
प्राचार्यश्री ने विनयप्रभ के साथ ही मतिप्रभ, हरिप्रभ और सोमप्रभ क्षुल्लकों को तथा कमलश्री, ललितश्री क्षुल्लिकानों को भी दीक्षा प्रदान की थी। इनमें से सोमप्रभ और कमलश्री क्षुल्लिका भाई-बहिन थे। इन दोनों के जन्म नाम समर एवं कील्हू थे । सोमप्रभ का जन्म वि. सं. १३७५
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