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गौतम रास : परिशीलन
स्तोत्र - गौतम स्वामी के गुण-वर्णन रूप संस्कृत में स्तोत्र भी प्राप्त हैं । सब से प्राचीनतम स्तोत्र श्रीवत्रस्वामी कृत माना जाता है । तत्पश्चात् जिनप्रभसूरि ( १४वीं शती) के तीन स्तोत्र, मुनिसुन्दरसूरि देवानन्दसूरि, धर्महंस के एवं एक अज्ञातकर्तृक स्तोत्र प्राप्त हैं । इनके अतिरिक्त ३ अष्टक और २ स्तुतियां भी प्राप्त हैं ।
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भाषा साहित्य - प्रार्य वज्रस्वामी रचित स्तोत्र और जिनप्रभसूरि के तीन स्तोत्रों के पश्चात् भाषा-साहित्य में अपभ्रंश से प्रभावित प्राचीन मरु-गुर्जर भाषा में गौतम गुणवर्णनात्मक यदि कोई प्राचीन कृति है तो वह एक मात्र हैवि. सं. १४९२ में खरतरगच्छीय विनयप्रभोपाध्याय रचित गौतमरासु । इस रास की प्रसिद्धि अत्यधिक हुई । आज भी यह रास लाखों जैन नर-नारियों को कण्ठस्थ है और प्रतिदिन प्रातः काल में इसका पाठ करते हैं ।
इस गौतमरास के पश्चात् तो १७वीं शताब्दी से गौतम स्वामी के नाम से अनेक कवियों ने मरु-गुर्जर भाषा में भास, सन्धि, रास, छन्द, स्तवन, स्वाध्याय, चैत्यवन्दन, चौपाई, गीत, गहूंली, पद, विंशिका, संज्ञक शताधिक लघु रचनायें प्राप्त हैं । इनमें से कुछ प्रकाशित हैं और कुछ अप्रकाशित हैं ।
इस शताब्दी के गत दशक में गौतम स्वामी के ऊपर शोधात्मक तीन पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं:- १. गुरु गौतम स्वामी : लेखक - रतिलाल दीपचन्द देशाई ( गुजराती में ), २. इन्द्रभूति गौतम : एक अनुशीलन : लेखक - गणेशमुनि शास्त्रो, ३. गणधर गौतम निर्वाण महोत्सव स्मारिका ।
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