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गणधर गौतम : परिशीलन
स्वयं के शिष्य परिवार की बागडोर अपने ही लघुभ्राता आर्य सुधर्म को सौंपदी । यही कारण है कि भगवान् के प्रथम पट्टधर शिष्य एवं प्रथम गणधर होते हुए भी महावीर की परम्परा गौतम स्वामी से प्रारम्भ न होकर सुधर्म स्वामी के नाम से आज भी अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है ।
केवली होने के पश्चात् वे १२ बारह वर्ष तक महावीर वाणी को जन-जन के हृदय की गहराइयों तक पहुँचाते रहे । महावीर की यशोगाथा को गाते रहे और शासन की ध्वजा को प्रबाधित रूप से फहराते रहे ।
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गौतम स्वामी अपनी देह का विश्व के समस्त जीवों के कल्याण के लिये निरन्तर उपयोग करते रहे । बाणवें वर्ष की परिपक्व अवस्था में उन्होंने देखा कि देह - विलय का समय निकट आ गया है, तो वे राजगृह नगर के वैभारगिरि पर आये और एक मास का पादपोपगमन अनशन स्वीकार कर लिया ।
अनशन के अन्त में देह त्याग कर गौतम स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया । गौतम की आत्म ज्योति, भगवान् महावीर और अनन्त मुक्तात्माओं की ज्योति में सदा के लिये मिल गई । महावीर के तुल्य, एकार्थ और विशेषता रहित बनकर प्रभु की वाणी को चरितार्थ कर दिया ।
इस प्रकार गौतम स्वामी ५० वर्ष गृहवास में, ३० वर्ष संयम पर्याय में और १२ वर्ष केवली पर्याय में कुल १२ वर्ष की श्रायु पूर्ण कर ईस्वी पूर्व ५१५ में अक्षय सुख के भोक्ता बनकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए ।
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